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शनिवार, 1 मार्च 2014

११८. यह पल


ओस की बूँद ने आखिर 
खोज ही ली फूल की गोद,
अब चाहे तेज़ हवाएं आएं 
उसे गिराने,मिट्टी में मिलाने,
या सूरज की तेज़ किरण 
सोख ले उसे बेरहमी से,
या कोई अनजान हाथ
उसे अलग कर दे फूल से -
ओस की बूँद को परवाह नहीं.

बहुत खुश है वह
कि मंजिल पा ली है उसने,
अब सारे खतरों से बेखबर 
चुपचाप सोई है वह.

आनेवाले पल की चिंता में 
कैसे भूल जाए ओस की बूँद 
कि यह पल सबसे सुन्दर है,
यह पल, जब वह फूल की गोद में है.

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (02-03-2014) को "पौधे से सीखो" (चर्चा मंच-1539) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत खूब ... सुन्दर पल को जी लेना चाहिए ...

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  3. बहुत सुंदर.ओस की बूँदें सुखद पलों की तरह,जो होते ही कितने हैं.

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