नाटक ख़त्म हो गया है,
पर्दा गिर चुका है,
दर्शक जा चुके हैं,
पर वह अब भी
अभिनय किए जा रहा है,
उसे तालियों का इंतज़ार है.
सुनो अभिनेता,
तुम भी चले जाओ,
किसी ने ताली नहीं बजाई,
इसका यह मतलब नहीं
कि तुम्हारा अभिनय बुरा था.
अगर तुम्हें यक़ीन है
कि तुम्हारा अभिनय अच्छा था,
तो वह वाक़ई अच्छा था,
इससे ज़्यादा ज़रूरी
और कुछ भी नहीं है.
सुनो अभिनेता,
कभी-कभी दर्शकों को
बहुत देर से समझ में आता है
कि उन्होंने वहां ताली नहीं बजाई,
जहाँ उन्हें बजाना चाहिए था.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 20 अप्रैल 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 20 अप्रैल 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 20 अप्रैल 2023 को 'राहें ही प्रतिकूल हो गईं, सोपानों को चढ़ने में' (चर्चा अंक 4657) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
दर्शक में ईमानदारी नहीं रह गई है
जवाब देंहटाएंचिन्तनपरक सृजन ।
जवाब देंहटाएंसही है, शायद ताली भी लोग देखादेखी बजाते हैं या अपने लिये ताली बजवाने की ख्वाहिश में, जब दोनों में से कुछ भी सम्मुख न हो तो बिना बजाए ही चले जाते हैं, इसलिए अपनी क़ीमत ख़ुद से बेहतर कौन जान सकता है।
जवाब देंहटाएंअगर तुम्हें यक़ीन है
जवाब देंहटाएंकि तुम्हारा अभिनय अच्छा था,
तो वह वाक़ई अच्छा था,
इससे ज़्यादा ज़रूरी
और कुछ भी नहीं है.
बहुत सटीक एव सारगर्भित
वाह!!!