समुद्र तुम्हारे सामने है,
डरो नहीं, मंथन करो,
हो सकता है, विष मिले,
पर अंत में अमृत मिलेगा.
यह मत समझो, तुम अकेले हो,
हिम्मत करो, आगे बढ़ो,
तुम्हारी मदद के लिए
आ जाएगा कोई विष्णु कहीं से.
रस्सी बन जाएगा कोई शेषनाग,
लिपट जाएगा 'मंदार' से,
तुम एक छोर पकड़ कर खींचो,
दूसरा छोर थाम लेगा कोई-न-कोई.
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 27 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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