top hindi blogs

शनिवार, 30 सितंबर 2017

२७९. समीक्षा

सुन्दर शब्द चुने हैं तुमने,
खूबसूरती से सजाया है उन्हें,
लय का ध्यान रखा है पूरा,
पर कवि, मुझे नहीं लगता 
कि तुमने जो लिखा है,
उसे कविता कहा जाना चाहिए.

कवि, अगर अपनी कविता में तुम
किसी आम आदमी की दास्तान,
किसी मजदूर की व्यथा,
किसी किसान की वेदना,
किसी गृहिणी का दुःख
या किसी बच्चे की मुस्कराहट का ज़िक्र करते,
तो भी मुझे पक्का यकीन नहीं है
कि तुम जो लिखते, वह कविता होती.

कवि,कविता के लिए एक ही कसौटी है मेरी,
समीक्षा का एक ही मानक है मेरा,
तुम्हारे लिखे को  मैं 
कविता तभी मानूंगा,
जब वह मेरे दिल को छू ले.

2 टिप्‍पणियां: