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शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

२३४. तकलीफ़

जो काँटा तुम्हारे पांव में चुभा है,
तुमको भी दुःख पहुंचाता है,
मुझे भी,
यह बात तुम भी जानते हो,
मैं भी,
पर शायद तुम यह नहीं जानते 
कि जो काँटा तुम्हारे पांव में चुभा है,
उससे तुम्हें जितनी तकलीफ़ है,
उससे ज़्यादा मुझे है.

काश कि काँटा मेरे पांव में चुभा होता,
काश कि मुझे तकलीफ़ कम होती.

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 06 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. अत्यंत भावपूर्ण ! बहुत सुन्दर !

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  3. बहुत ही उम्दा .... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)

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  4. बहुत खूब ... वहां उनकी अपनी दोनों तकलीफों का दर्द जो है .. इसलिए ज्यादा है यहाँ

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  5. बहुत सुंदर रचना। किसी के दर्द को महसुस करना बहुत बडी बात है।

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