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शनिवार, 17 सितंबर 2016

२२८. नमक

बहुत काम की चीज़ हूँ मैं,
थोड़ा सा खर्च होता हूँ,
पर स्वाद बढ़ा देता हूँ,
भारी हूँ सब मसालों पर.

घुल-मिल जाता हूँ आसानी से,
बिना किसी नाज़-नखरे के,
फिर भी ख़ास क़ीमत नहीं मेरी,
अपमान अनदेखी से दुखी हूँ मैं.

बहुत देर लगी मुझे समझने में 
कि जो आसानी से मिल जाता है,
वह कितना भी अच्छा क्यों न हो,
उसकी कद्र नहीं होती.

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