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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

१९५. मेरा शहर

आजकल मेरा शहर चर्चा में है.

हो रहे हैं रोज़ बलात्कार,
बढ़ती जा रही है 
नाबालिगों की तादाद 
अपराधियों में,
भरी बसों में भी है ख़तरा,
अपने घर भी नहीं कोई महफ़ूज़.

हर कोई लिए घूमता है 
चाकू-छुरियां, तमंचे,
छोटी-सी बात पर 
चल जाती हैं गोलियां.

पूरा हो जाता है कभी भी 
किसी का भी समय,
पार्किंग को लेकर,
पैसों को लेकर,
जाति,भाषा,धर्म -
किसी भी मुद्दे को लेकर.

आजकल मेरा शहर चर्चा में है,
परेशान और शर्मशार है वह,
मेरा शहर सोचता है 
कि काश ये गली-मोहल्ले छोड़कर 
वह किसी और शहर में रह पाता.

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (13-12-2015) को "कितना तपाया है जिन्दगी ने" (चर्चा अंक-2189) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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