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शुक्रवार, 19 जून 2015

१७४. गौरैया


खुली खिड़की के पल्ले पर 
आज फिर आ बैठी है गौरैया,
चूं-चूं , चीं-चीं से 
उठा रखा है घर सिर पर.

गर्म हवाएं घुस रही हैं,
झुलस रहा है कमरा,
पर खुली रहने दो खिड़की,
खामोश रहने दो ए.सी.  को,
कहीं उड़ न जाय 
पल्ले पर बैठी गौरैय्या.

अबके जो उड़ी
तो शायद फिर न सुने 
उसकी चूं-चूं , चीं-चीं ,
अबके जो उड़ी
तो शायद फिर कभी 
दिखाई न दे गौरैय्या.

12 टिप्‍पणियां:

  1. अब प्यारी गौरैय्या बहुत कम ही दिखती है..
    बहुत ही सुन्दर रचना...

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-06-2015) को "योगसाधना-तन, मन, आत्मा का शोधन" {चर्चा - 2013} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    अन्तर्राष्ट्रीय योगदिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  3. सच कहा है ... जिस रफ़्तार से कमी आ रही है पंछियों की आबादी में ... इंसान कहीं इन्हें खो न दे ...

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  4. वाह बहुत सुंदर रचना

    बधाई

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  5. बहुत सुंदर शब्द ,बेह्तरीन अभिव्यक्ति .!शुभकामनायें. आपको बधाई
    कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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  6. ye kitna bada sach hai! aur isi liye,, kitna udaas tathya hai.. jo apni gorraiya nahi bacha sakte, vo aur kya bacha sakte hain?

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  7. कंक्रीट के जंगल में आज पंछी दुर्लभ होते जा रहे हैं...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  8. गौरैय्या तो सचमुच विलुप्त हो चुकीं हैं मैं ने तो वर्षों से नहीं देखीं ,अच्छी रचना .

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  9. गौरैया आँगन की शोभा ,अब सचमुच बेघर सी हो रही है . सुन्दर कविता

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