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शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

१४४. बुझा हुआ दिया

बुझे हुए दिए ने कहा,
मुझे ज़रा साफ़ कर दो,
थोड़ा तेल डाल दो मुझमें,
एक बाती भी लगा दो,
मुझे तैयार रहना है.

अभी तो सूरज चमक रहा है,
अँधेरा भाग गया है कहीं,
किसी को याद नहीं मेरी,
पर धीरे-धीरे सूर्यास्त होगा,
अँधेरा आ धमकेगा हक़ से,
तब मुझे फिर से जलना होगा.

बीती कई रातों में मैंने
दूर भगाया है अँधेरा,
राह दिखाई है भटकों को,
पर मैं थका नहीं हूँ,
मैं अभी चुका नहीं हूँ,
मैं संतुष्ट नहीं हुआ हूँ.

मैं फिर से जलना चाहता हूँ,
थोड़ी मदद कर दो मेरी,
तेल और बाती डाल दो मुझमें,
लायक बना दो मुझको,
ताकि जैसे ही मेरी ज़रूरत हो,
तुम मुझे प्रज्जवलित कर सको.

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (02-11-2014) को "प्रेम और समर्पण - मोदी के बदले नवाज" (चर्चा मंच-1785) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत खूब बुझा हुआ दिया अभी बुझा ही रहने दो -

    अभी तो और भी यादें सफर में आएंगी ,

    चराग़े शब मेरे मेहबूब संभाल के रख।

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  3. बहुत हि सुंदर , ओंकार सर धन्यवाद !
    Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
    आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 3 . 11 . 2014 दिन सोमवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

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  4. साथ देना हो होगा ... वो जल रहा है हमारे लिए ...
    लाजवाब भाव पूर्ण रचना ...

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  5. अच्छी प्रस्तुति !
    अँधेरा आ धमकेगा हक़ से,
    तब मुझे फिर से जलना होगा.

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  6. अभी तो बहुत दम है इस दिये में बाक़ी...दीपक के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया...लाज़वाब अभिव्यक्ति...

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  7. अभी तो सूरज चमक रहा है,
    अँधेरा भाग गया है कहीं,
    किसी को याद नहीं मेरी,
    पर धीरे-धीरे सूर्यास्त होगा,
    अँधेरा आ धमकेगा हक़ से,
    तब मुझे फिर से जलना होगा.
    bahut khub behtreen srijan ..badhayi shbhkamnaye

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