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शुक्रवार, 2 मई 2014

१२४. श्राद्ध

इस बार मुझे कुछ संदेह है,
इस बार लगता है श्राद्ध अधूरा रहा.

रीतिपूर्वक सब पकवान बने,
पूजा-अर्चना भी नियम से हुई,
बारह हिंदू ब्राह्मणों ने 
प्रेमपूर्वक भोजन किया,
फिर भी मन में एक खटका है.

पता नहीं, जिन गायों को मैंने ग्रास दिया,
वे हिन्दू थीं या मुसलमान,
और जिन्होंने सबसे पहले पकवान चखे,
वे कौवे कौन थे !

11 टिप्‍पणियां:

  1. -सुंदर रचना...
    आपने लिखा....
    मैंने भी पढ़ा...
    हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
    दिनांक 05/05/ 2014 की
    नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
    आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
    हलचल में सभी का स्वागत है...
    -सुंदर रचना...
    आपने लिखा....
    मैंने भी पढ़ा...
    हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
    दिनांक 05/05/ 2014 की
    नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
    आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
    हलचल में सभी का स्वागत है...
    -सुंदर रचना...
    आपने लिखा....
    मैंने भी पढ़ा...
    हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
    दिनांक 05/05/ 2014 की
    नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
    आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
    हलचल में सभी का स्वागत है...

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  2. तमाचे की गूँज सुनाई दी मुझे ..... लेकिन कोई असर नही होता ना .....

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  3. सबके सब बाज़ीगर भोपाली थे.… .

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  4. गहरा कटाक्ष है आज के समाज पर ... सब कुछ संकुचित हो रहा है आज ...

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  5. बहुत सुन्दर और सटीक कटाक्ष...

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