शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

११३. मकान सिसकते हैं

मकान सिसकते हैं,
मैंने महसूस किया है.

जब किसी घर में बर्तन
ज़ोर-ज़ोर से खड़कते हैं,
मकान सहम जाते हैं.
जब भरे-पूरे घर में 
चुप्पी सी छाई हो,
मकानों को अच्छा नहीं लगता.
जब किसी अकेले कोने में 
चुपचाप बैठा कोई बूढ़ा 
खाने की थाली का इंतज़ार करता है,
मकान की रुलाई फूटती है.
जब कोई हमेशा के लिए 
घर छोड़कर जाता है 
या निकाला जाता है,
मकान का दिल भर आता है.

जब घर टूटते हैं,
मकान सिसकते हैं,
हाँ, मैंने ऐसा महसूस किया है.

7 टिप्‍पणियां:

  1. सच कहा जब घर टूटते है तो बहुत कुछ टूट जाता है !
    बहुत सुन्दर संवेदनशील रचना !

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  2. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय

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  3. बहुत संवेदनशील रचना ... मौन सिस्की की आवाज़ सुन नहीं पाते रहने वाले ...

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