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शनिवार, 7 दिसंबर 2013

१०७. त्याग

आओ, बाँट ले आपस में 
घर का सारा सामान.

कर लें खेत के तीन टुकड़े-
पूरबवाला छोटे का,
बीचवाला मंझले का
और पश्चिमवाला मेरा.

बाँट लें घर के कमरे-
पीछेवाले मंझले के,
आंगनवाले छोटे के
और सामनेवाले मेरे.

सोना-चांदी,कांसा-पीतल,
भगोने-कड़ाही,चम्मच-कांटे,
लोहा-लक्कड़, कूड़ा-करकट,
सब कुछ बाँट लें तीन हिस्सों में.

अब बचे माँ और पिताजी,
कैसे बाँटें उन्हें तीन हिस्सों में?
चलो, माँ छोटे की,
पिताजी मंझले के,
लो, अबकी बार मैंने 
अपना हिस्सा छोड़ दिया.


12 टिप्‍पणियां:

  1. सब बांटा जा सकता है..
    पर माता पिता को कैसे बांटे..
    भावपूर्ण रचना..

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  2. बड़ा त्याग किया अपना हिस्सा छोड़ दिया -अच्छा व्यंग
    नई पोस्ट नेता चरित्रं
    नई पोस्ट अनुभूति

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  3. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर भावों की अभिव्यक्ति !!

    जवाब देंहटाएं
  5. तल्ख़ ... हर कोई यही करना चाहता है आज ... संवेदनशील ... गहरी रचना ...

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  6. कल 11/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  7. आज का यथार्थ...बहुत सटीक प्रस्तुति...

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