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शनिवार, 20 अप्रैल 2013

७७. दीवार

कब तक चलेगा दोषारोपण,
खुद को सही ठहराने का प्रयास
और एक दूसरे से आस 
कि माफ़ी मांगे गलती के लिए.

उम्र निकल गई इसी तरह,
वरना न तुम चाहते थे दूरी 
न मैं चाहता था मुंह मोड़ना,
दोनों ने चाहा था साथ चलना.

वह दीवार बड़ी कच्ची थी,
जो दोनों के बीच खड़ी थी,
पर हमने ज़ोर ही नहीं लगाया,
खुद-ब-खुद वह गिरती कैसे,
सारी ज़िंदगी उसे सहारा जो दिया.

अब मैं ज़रा जल्दी में हूँ,
मर गया तो तुम्हें कहाँ खोजूंगा,
चलो कह देता हूँ कि गलती मेरी थी 
और यह भी कि तुमने मुझे माफ किया.

3 टिप्‍पणियां:

  1. वह दीवार बड़ी कच्ची थी,
    जो दोनों के बीच खड़ी थी,
    पर हमने ज़ोर ही नहीं लगाया,
    खुद-ब-खुद वह गिरती कैसे,
    सारी ज़िंदगी उसे सहारा जो दिया....

    कभी कभी अपने अपने अहम इतने ऊंचे हो जाते हैं की कोई पहल नहीं करना चाहता ...
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

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