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शनिवार, 13 अप्रैल 2013

७६. रंग

बड़ी धूमधाम से मनी इस बार होली,
खूब मचा हुड़दंग,
खूब बरसे रंग,
लाल, पीले, नीले,
हरे, गुलाबी, बैगनी,
बड़े पक्के, गहरे रंग,
पर थोड़ा सा साबुन, थोड़ा सा पानी,
छूट गए सब-के-सब चंद दिनों में.

बस एक रंग किसी ने ऐसा डाला, 
जिस पर न साबुन का असर है, न पानी का,
जो दिखता भी नहीं,
जो छूटता भी नहीं,
जो अच्छा भी लगता है,
जो परेशान भी करता है,
जो चैन भी देता है,
जो बेचैन भी करता है.

मैंने तय कर लिया है 
कि अगले साल होली नहीं खेलूंगा. 

8 टिप्‍पणियां:

  1. अरे क्यूँ.....
    रंग और पक्के हो जायेंगे...खूब खेलिए होली...
    सादर
    अनु

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  2. जीवन में रंग अनेक ....

    बहुत बढ़िया उम्दा प्रस्तुति,आभार
    Recent Post : अमन के लिए.

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  3. वो रंग छूटेगा तो आप होली खेलेंगे ....
    कई बार जीवन भर रंगे रहता है कोई किसी के रंग में ... भावभीनी रचना ..

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  4. अरे भई ..क्यूँ नहीं खेलेंगे आप होली ...रंग जो चढ़ा ..ख़ुशी का हो तब भी सेलिब्रेशन मांगता है और उदासी का हो तब तो और भी ज्यादा सेलेब्रेशन मांगता है...वापिस जिंदगी की तरफ मुड़ने के लिए ...

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  5. सुंदर रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई और शुभकामनायें

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

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  6. लाजवाब |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  7. यह रंग कहाँ छूटता है...होली न भी खेला फिर भी यह साथ रहेगा..बहुत सुन्दर रचना.

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