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शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

५४.तान

कान्हा, कब से खामोश है तुम्हारी बांसुरी,
कोई मीठी तान छेड़ो ना,
वन-उपवन,नदी-तालाब छोड़ो,
अब बस्तियों में आओ ना.

इंतज़ार में हैं लाखों देवियाँ,
जिनके कानों को झिड़कियों की
आदत सी पड़ गई है,
तिरस्कृत,उपेक्षित,अपमानित-
उनके कानों में थोड़ा शहद घोलो ना.

कान्हा, एक ऐसी तान छेड़ो
कि जाग उठे उनकी जीजिविषा,
अंगड़ाई ले उनमें कोई आशा,
कि खून खौल उठे उनका.

एक तान जो फूँक दे उनमें नई जान,
जगा दे उनका आत्म-सम्मान,
भगा दे सारा डर, सारी दुविधा,
करा दे उनकी खुद से पहचान.

बहुत देर हो गई कान्हा,
अब बस दौड़े चले आओ,
रख लो अपने होठों पर मुरली
और छेड़ दो एक ऐसी तान 
कि सब-की-सब लांघ जायं देहरी,
कि सब-की-सब राधा बन जायं.

7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह...

    कि सब-की-सब लांघ जायं देहरी,
    कि सब-की-सब राधा बन जायं.......
    बहुत सुन्दर..

    अनु

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  2. बहुत सुन्दर कृष्णमयी प्रस्तुति ..
    आभार!

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