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रविवार, 14 अक्तूबर 2012

५१. गुमशुदा

कल रात सपने में 
कुछ विचार चले आए 
मेरे पास भूले-भटके.
मैंने उन्हें रोका,
कविता में ढाला,
बस कलम-दवात लेकर 
कागज़ पर उतारने ही वाला था 
कि कविता गायब हो गई.
न जाने कहाँ खो गई,
बहुत खोजा, पर मिली ही नहीं.
ध्यान रखना,
कहीं दिखे तो बताना,
पर इतना याद रखना 
कि वह कविता मेरी है, सिर्फ मेरी,
किसी और की नहीं.
अगर कहीं मिल जाय,
तो ईमान बनाए रखना,
मुझे हिफाज़त से सौंप जाना.

10 टिप्‍पणियां:

  1. आज हर जगह पर लोगों का ईमान बिगड गया है,,,कविता क्या चीज है

    MY RECENT POST: माँ,,,

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  2. एक अच्छी रचना ..ताजगी और नयापन लिए

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  3. मिली मुझे छत की मुंडेर पर
    पंछियों संग दाना चुगती
    जीवन के गीत सुनती .... लीजिये अपनी कविता जो जीवन के अद्भुत भाव देती है

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  4. ओंकार जी....पन्नों पर लिखी जा चुकी कवितायें लोग चुरा लेते हैं फिर तो ये ख़याल गुम हुआ है.....कोई लौटाने वाला नहीं....
    :-)

    ये तो मजाक की बात थी...
    बहुत खूबसूरत भाव...वाकई ज़रा हट के कविता है...
    सादर
    अनु

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  5. सही है हर चीज़ कॉपी होने लगी है, चोरी होने लगी है ।

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  6. सही है कितना भी संभालो चीज़ें गायब हो ही जाती है ।

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  7. बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति...

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  8. एक सुन्दर अहसास...बहुत सुन्दर

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