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शनिवार, 22 सितंबर 2012

४९. चपातियाँ और गृहिणी

जल रहा है चूल्हे पर तवा,
सेंक रही है चपातियाँ गृहिणी.

सोच रही है, उसे भी सेंका जाता है 
इसी तरह उलट-पलटकर हर रोज,
पर लगता है पूरी तरह सिंकी नहीं वह,
वरना सिंकने  के बाद कहाँ लौटती हैं 
वापस गर्म तवे पर चपातियाँ.

गृहिणी सोचती है,
उससे ज्यादा भाग्यवान हैं चपातियाँ,
जो कभी लापरवाही से जल जाती हैं,
कम-से-कम मुक्त तो हो जाती हैं.

एक वह है, जो न सिंकती है,
न जलती है, न राख होती है,
बस सुर्ख लाल तवे पर
हर समय चढ़ी रहती है.

17 टिप्‍पणियां:


  1. एक वह है, जो न सिंकती है,
    न जलती है, न राख होती है,
    बस सुर्ख लाल तवे पर
    हर समय चढ़ी रहती है...बहुर अच्छी गहरी रचना

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  2. एक वह है, जो न सिंकती है,
    न जलती है, न राख होती है,
    बस सुर्ख लाल तवे पर
    हर समय चढ़ी रहती है.

    ...एक कटु सत्य...बहुत सशक्त प्रस्तुति..

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  3. महिलाओं की सामाजिक स्थिति का सटीक चित्रण. उनके रोजमर्रे से जुड़े उपमा, उपमेय और बिंब बहुत खूब!

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  4. बस सुर्ख लाल तवे पर
    हर समय चढ़ी रहती है.

    kartavya me leen ...
    sundar aur sarthak rachna ...
    shubhkamnayen ...!!

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    उत्तर
    1. बहुत ख़ूबसूरत सृजन, बधाई.

      कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें , अपना स्नेह प्रदान करें.

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  5. बहुत ही संवेदनशील ...
    प्रभावी रचना ... नारी के मन की यंत्रण को लिखा है शब्दों में ...

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  6. कल 24/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  7. वाह क्या तारतम्य संजोया है. सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिये शुभकामनायें.

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  8. बस सुर्ख लाल तवे पर
    हर समय चढ़ी रहती है.kya baat hai.....

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  9. बहुत ही संवेदनशील रचना..
    एक वह है, जो न सिंकती है,
    न जलती है, न राख होती है,
    बस सुर्ख लाल तवे पर
    हर समय चढ़ी रहती है.
    गहरे भाव लिए रचना..

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  10. गहरे भाव...जिंदगी के फलसफ़े को समेटते हुए एक उम्दा रचना |

    सादर नमन |

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