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रविवार, 4 मार्च 2012

२४.शहर की सड़कें


शहर की चौड़ी-चमचमाती सड़कें
लगातार फुट-पाथों को लीलतीं
ताकि बढाई जा सकें लेनें
और गाड़ियाँ दौड़ सकें सरपट.


मीलों लम्बे flyover
छलांगों में पार कर रहे चौराहे,
चिढ़ा रहे नीचे जलती-बुझती
बेबस-सी लाल बत्तियों को.


एक बूढ़ा थका-सा, बदहवास,
निढाल निरंतर कोशिश से
कि सड़क के उस पार पहुँच जाय,
जहाँ पिछले आधे घंटे से
उसका परिवार इंतज़ार में खड़ा है.



8 टिप्‍पणियां:

  1. सच है...कोई कहीं अब भी जूझ रहा है इस तेज रफ़्तार से कदम मिलाने को...

    सार्थक रचना..

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  2. एक बूढ़ा थका-सा, बदहवास,
    निढाल निरंतर कोशिश से
    कि सड़क के उस पार पहुँच जाय,
    जहाँ पिछले आधे घंटे से
    उसका परिवार इंतज़ार में खड़ा है.
    raftaar thakaan si hai

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  3. आज के बढते तेज रफ्तार जिन्दगी में एक तबका ऐसा भी है जो परेशान है.

    NEW POST...फिर से आई होली...
    NEW POST फुहार...डिस्को रंग...

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  4. दौड़ते दौड़ते थक गया है....अब और नहीं...

    सशक्त रचना...
    बधाई.

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  5. हिम्मत .. बस हिम्मत की जरूरत है इस सड़क को हारने के लिए ...

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