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रविवार, 28 अगस्त 2011

2.चोट  

आओ,तुम्हें वह चोट दिखा दूं ,
शांत कर दूं  तुम्हारी जिज्ञासा,
सब कुछ बता दूं साफ़ साफ़.

किसने दी,कब दी,क्यों दी,
कितनी गहरी है,जांच लेना तुम,
हो सके तो दवा भी कर देना.

पर कुछ मत पूछना 
उन गहरी चोटों के बारे में,
जो मैंने खुद को पहुंचाई हैं
या जो मुझे अपनों से मिली हैं.

अपनों की पहुंचाई
या नासमझी में लगी चोट को
छिपाना ही बेहतर है
इलाज कराने से उसे
सेना ही बेहतर है.














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