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शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

७.इस बार की बीमारी 

इस बार बीमारी आई और गई.

सब कुछ तो था पहले जैसा,
डॉक्टर,स्टेथोस्कोप, इंजेक्शन,
दवाइयां,परहेज़,आराम.

हाल पूछने आये पड़ोसी,
चाय-नाश्ता करके गए,
दफ्तर से फ़ोन आया 
कि चिंता मत करना काम की ज़रा भी.

इस बार बस तुम नहीं आई,
तुम्हारी आँखों में वेदना,
तुम्हारे चेहरे पर चिंता की लकीरें ,
बहुत मिस कीं मैंने इस बार.

मिस किया तुम्हारा यह कहना कि
"जल्दी ठीक हो जाओगे तुम"
और असमंजस भरा तुम्हारा 
आधा-अधूरा  सा स्पर्श.

इस बार बीमारी आई और गई,
इस बार पहले-सा मज़ा नहीं आया.  

11 टिप्‍पणियां:

  1. मिस किया तुम्हारा यह कहना कि
    "जल्दी ठीक हो जाओगे तुम"
    और असमंजस भरा तुम्हारा
    आधा-अधूरा सा स्पर्श..... kahan rah gai tum !

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  2. हा...हा...हा...
    बहुत खूब .....
    बीमारी का भी अपना ही मजा होता है ....
    बशर्ते की पूछने वाले हों .....
    अगर खुद अपनी देख भाल करनी पड़े तो मुसीबत .....:))

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  3. सुंदर प्रस्तुति,अच्छी पोस्ट,रचना पसंद आई,बधाई.......

    दीपावली की शुभकामनायें

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  4. अलग ही एहसास जगाती कविता।

    सादर

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  5. मिस किया तुम्हारा यह कहना कि
    "जल्दी ठीक हो जाओगे तुम"
    और असमंजस भरा तुम्हारा
    आधा-अधूरा सा स्पर्श.

    ....बहुत कोमल अहसास...सुन्दर अभिव्यक्ति..दीपावली की हार्दिक अग्रिम शुभकामनाएं !

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  6. मिस किया तुम्हारा यह कहना कि
    "जल्दी ठीक हो जाओगे तुम"
    और असमंजस भरा तुम्हारा
    आधा-अधूरा सा स्पर्श.

    बहुत सुन्दर भाव लिए हुए ..बीमारी का भी तभी मज़ा है जब कोई अपना पूछे ..

    कई रचनाएँ पढ़ लीं आपकी .."लकडहारे से" बहुत अच्छी लगी ...

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  7. और बुरा हुआ। बिमारी आई बुरा हुआ...बिमारी आई पर तू नहीं आई..और बुरा हुआ।

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  8. ख्याल करने वाले हों तो बीमारी भी सहज लगती है!

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  9. बीमारी कि बातों में बहुत कुछ कह दीया आपने.. और भी रचनाएँ पढ़ीं, अच्छी लगी. दीवाली की शुभकामनायें.

    मेरी नयी कविता के पोस्ट पर आपका स्वागत है..
    www.belovedlife-santosh.blogspot.com

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