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शनिवार, 9 जनवरी 2016

१९९. लड़ाकू विमान

सैनिक दफ़्तरों के आगे 
दिख जाते हैं कहीं-कहीं
बड़े-बड़े लड़ाकू विमान,
असली, पर उड़ने में अक्षम.

कभी जो बातें करते थे हवा से,
बरसाते थे गोले,
अब चल-फिर भी नहीं सकते,
चुपचाप बेचारे से खड़े हैं,
नुमाइश की चीज़ बने बैठे हैं.

कभी-कभार उन पर बैठ जाती है 
थकी-मांदी कोई चिड़िया,
थोड़ी देर सुस्ताती है,
फिर उड़ जाती है 
और वहीँ का वहीँ रह जाता है 
वह विशालकाय लड़ाकू विमान.

दरअसल कोई कितना ही 
बड़ा लड़ाका क्यों न हो,
एक दिन बंद हो ही जाता है 
उसका उड़ना.

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