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मंगलवार, 28 सितंबर 2021

६०६. गोरैया

 


अब न रहे वे घर,

न वे रोशनदान,

जहाँ मैं तिनके जमा कर सकूँ,

अंडे दे सकूँ,

उन्हें से सकूँ,

जहाँ मेरे नन्हें चूज़े 

आराम से रह सकें,

उड़ने लायक हो सकें. 


हर जगह से निर्वासित हूँ मैं,

हर दरवाज़ा, हर खिड़की 

अब बंद है मुझ पर,

अब मैं जी नहीं सकती,

अंत नज़दीक है मेरा. 


पर तुम भी सुन लो 

बिना गुलेलवाले बहेलियों,

हो सकता है कि 

मेरी तरह कभी

तुम्हारी भी बारी आ जाय,

हो सकता है कि 

एक दिन तुम्हारी भी गिनती हो 

लुप्तप्राय प्राणियों में.


शनिवार, 25 सितंबर 2021

६०५.बदलाव



सूरज जो चमक रहा है शान से,

बस कुछ घंटों में डूब जाएगा. 

नदी जो अभी उफान पर है,

सागर तक पहुँचकर खो जाएगी.

पानी जो बरस रहा है मूसलाधार,

थक-हार कर थम जाएगा. 

रेत जो छू रही है आसमान,

हाँफकर ज़मीन पर गिर जाएगी. 

रात जो डरा रही है सबको,

पौ फटते ही चली जाएगी. 


अच्छा-बुरा जो भी है,

आज है,कल नहीं है,

अभी है,बाद में नहीं है.


इसलिए ज़्यादा दुःखी होना 

उतना ही अर्थहीन है, 

जितना ज़्यादा ख़ुश होना.  


गुरुवार, 23 सितंबर 2021

६०४. शिकायत



माँ,तुम्हारी हालत देखकर 

मुझे तरस आता है,

बहुत तकलीफ़ होती है,

थोड़ा गुस्सा भी आता है. 


आज क्यों मजबूर हो तुम,

क्यों खा रही हो 

दर-दर की ठोकरें,

क्या मिला तुम्हें प्यार लुटा के, 

तुम्हारा त्याग क्यों व्यर्थ गया?


माँ, तुम्हारा हाल मुझसे 

देखा नहीं जाता,

पर मैं कुछ कर नहीं सकती,

क्योंकि मैं तो हूँ ही नहीं,

मैं तो कभी जन्मी ही नहीं,

जन्म से पहले ही 

मुझे मौत दे दी गई, 

उनके इंतज़ार में, 

जिनको तुमने मर कर जीवन दिया,

जिन्होंने तुम्हें जीते जी मौत दी. 


माँ,आज अगर मैं होती,  

तो मेरी और तुम्हारी कहानी 

शायद कुछ और होती,

काश, मैं जन्म ले पाती।


मंगलवार, 21 सितंबर 2021

६०३. मौसम

 


बहुत गर्मी है आज,

सूरज चिलचिला रहा है,

हवाएं ख़ामोश हैं,

पत्ते गुमसुम,

पसीने की जैसे 

नदी बह रही है,

पर आज मौसम अच्छा है,

आज तुम घर जो आ रही हो. 


शनिवार, 18 सितंबर 2021

६०२. कोयल और कौआ



उसकी मीठी बोली पर मत जाना,

बड़ी चालबाज़ है वह, 

उसके अंडे दूसरे ही सेते हैं,

वह ख़ुद डाल पर बैठकर 

कुहू-कुहू करती रहती है. 


कितना आसान होता है 

अपना काम किसी को सौंपकर 

ख़ुद मस्ती में गीत गाना !


मुझे तरस आता है कौए पर,

जो अपनी काँव-काँव से 

सबके कान फोड़ता है,

पर दूसरों के अंडे 

अपने मानकर सेता है.  


मीठा बोलना अच्छा है,

पर भ्रम में मत रहना,

बोली ही सब कुछ नहीं होती.


गुरुवार, 16 सितंबर 2021

६०१.गुलेल



फेंक दो गुलेलें,

एक  यही तो खेल नहीं है.

देखो, पेड़ों की डालियों पर 

सहमे बैठे हैं पंछी,

क्या तुम्हें नहीं भाता 

उनका चहचहाना?

***

अगर नहीं फेंक सकते गुलेल,

तो यूँ कर लो,

पत्थर नहीं, फूल चलाओ,

जितना चाहो,

परिंदों पर बरसाओ. 

***

खेल के नाम पर 

बच्चों के हाथों में 

गुलेल मत दो,

चहचहाते पंछियों को 

ख़ामोश कर देना 

कुछ भी हो सकता है,

खेल नहीं हो सकता. 


सोमवार, 13 सितंबर 2021

६००.दूरी



काश कि मेरी ख़ुशी में 

तुम भी शामिल होते. 


एक वक़्त वह भी था,

जब हर ख़ुशी में 

हम साथ होते थे,

मैं तुम्हारे पास 

या तुम मेरे पास,

पर अब साथ होना 

सपना-सा हो गया है,

अब तुम अशक्त 

और मैं व्यस्त. 

अब तुम्हारे बिना ही मुझे 

मनानी होंगी सारी ख़ुशियाँ. 


अक्सर ऐसा क्यों होता है 

कि जब किसी की ज़रूरत 

सबसे ज़्यादा महसूस होती है,

वह अचानक दूर हो जाता है?