सैनिक दफ़्तरों के आगे
दिख जाते हैं कहीं-कहीं
बड़े-बड़े लड़ाकू विमान,
असली, पर उड़ने में अक्षम.
कभी जो बातें करते थे हवा से,
बरसाते थे गोले,
अब चल-फिर भी नहीं सकते,
चुपचाप बेचारे से खड़े हैं,
नुमाइश की चीज़ बने बैठे हैं.
कभी-कभार उन पर बैठ जाती है
थकी-मांदी कोई चिड़िया,
थोड़ी देर सुस्ताती है,
फिर उड़ जाती है
और वहीँ का वहीँ रह जाता है
वह विशालकाय लड़ाकू विमान.
दरअसल कोई कितना ही
बड़ा लड़ाका क्यों न हो,
एक दिन बंद हो ही जाता है
उसका उड़ना.
दिख जाते हैं कहीं-कहीं
बड़े-बड़े लड़ाकू विमान,
असली, पर उड़ने में अक्षम.
कभी जो बातें करते थे हवा से,
बरसाते थे गोले,
अब चल-फिर भी नहीं सकते,
चुपचाप बेचारे से खड़े हैं,
नुमाइश की चीज़ बने बैठे हैं.
कभी-कभार उन पर बैठ जाती है
थकी-मांदी कोई चिड़िया,
थोड़ी देर सुस्ताती है,
फिर उड़ जाती है
और वहीँ का वहीँ रह जाता है
वह विशालकाय लड़ाकू विमान.
दरअसल कोई कितना ही
बड़ा लड़ाका क्यों न हो,
एक दिन बंद हो ही जाता है
उसका उड़ना.
जय मां हाटेशवरी...
उत्तर देंहटाएंआपने लिखा...
कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये दिनांक 11/01/2016 को आप की इस रचना का लिंक होगा...
चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर...
आप भी आयेगा....
धन्यवाद...
बहुत सुंदर.
उत्तर देंहटाएंयही संसार की विडम्बना है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
उत्तर देंहटाएंबहुत सुंदर ।
उत्तर देंहटाएंशायद इसी को जिंदगी कहते हैं ...
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