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शनिवार, 30 जनवरी 2016

२०२. चट्टान


मैं रास्ते पर पड़ा 
कोई कंकड़ नहीं 
कि तुम ठोकर मारो,
दूर फेंक दो मुझे
और अपने होंठों पर 
विजयी मुस्कान लिए 
आगे बढ़ जाओ.

मैं चट्टान हूँ,
मुझे ठोकर मारोगे 
तो चोट ही खाओगे,
नहीं होगा मेरा 
कोई बाल भी बांका,
मैं टिका रहूँगा 
बिना हिले 
वहीँ का वहीँ,
तुम्हारा रास्ता रोके.

मुझसे टकराना है 
तो दलबल के साथ आओ,
छैनी-हथौड़ों के साथ आओ,
गोला-बारूद के साथ आओ,
मुझे दबाना है 
तो दमन की तैयारी के साथ आओ. 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (01-02-2016) को "छद्म आधुनिकता" (चर्चा अंक-2239) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. चट्टान से टकराना आसान कहाँ होगा ...

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  3. दिनेश चन्द्र12 फ़रवरी 2016 को 5:35 pm बजे

    अति सुन्दर

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