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गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

६३५. कोहरा





जब घना कोहरा छा जाता है,

हाथ को हाथ नहीं सूझता,

मुझे दिखती है मेरी आकृति,

जो सवाल पूछती है मुझसे-

खुरदुरे, कँटीले सवाल. 


ये सवाल कर देते हैं मुझे 

असहज, बेचैन, निरुत्तर,

मैं लौट जाना चाहता हूँ 

शोर में, अस्त-व्यस्तता में,

पर कोहरा है 

कि जल्दी छँटता ही नहीं. 


मुझे कोहरा पसंद नहीं,

क्योंकि उसमें दिखती है 

मुझे मेरी आकृति,

जिससे मैं डरता हूँ, 

जो सवाल बहुत पूछती है.