बहुत दिन हुए,
बालकनी में चलते हैं,
बात करते हैं.
ऐसे बात करते हैं
कि मुंडेर पर बैठी चिड़िया
बिना डरे बैठी रहे,
कलियाँ रोक दें खिलना,
सूखे पत्ते चिपके रहें शाखों से,
हवाएं कान लगा दें,
दीवारें सांस रोक लें,
ठिठककर रह जाएं
सूरज की किरणें.
आज कुछ बात करते हैं,
इस तरह बात करते हैं
कि बात करना छिपा न रहे,
पर बात का पता भी न चले.
आज कुछ अलग करते हैं,
होंठों को सिल लेते हैं,
आज आँखों से बात करते हैं.