top hindi blogs

रविवार, 14 अप्रैल 2024

७६२.पहाड़ों पर धुंध

 

लम्बे-ऊंचे पेड़,

जो कभी ढलान पर उगे थे, 

हमने काट दिए हैं,

पहाड़ों के सीने में घुसकर 

हमने निकाल लिए हैं 

दबे हुए खनिज. 

 

जहाँ पगडंडियाँ भी नहीं थीं,

वहां हमने बना ली हैं सड़कें,

जहाँ चरवाहे भी नहीं जाते थे,

वहां हम मनाने लगे हैं पिकनिक. 

 

चिड़ियाँ चहचहाती थीं जहाँ,

वहां अब गूंजते हैं फ़िल्मी गाने,

खो चुके हैं पहाड़ अब 

अपना सारा पहाड़पन. 

 

पहाड़ अब नंगे हैं,

क़रीब से देख रही हैं उन्हें 

हज़ारों लाखों नज़रें,

मुग्ध हो रही हैं 

उनकी सुंदरता पर. 

 

पहाड़ कोशिश में हैं 

कि अपना नंगापन छिपा लें,

धुंध उनका पैरहन है. 





5 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति का दोहन गंभीर विषय है जिसपर ध्यान आकृष्ट करवाना आवश्यक है।
    बहुत अच्छी रचना सर।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १६ अप्रैल २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं