न जाने क्यों
आजकल इंसान
कुत्तों जैसे बनना चाहते हैं.
वे आदमियों की तरह नहीं,
कुत्तों की तरह लड़ते हैं,
उन्हीं की तरह जीभ लपलपाते हैं,
सुविधाओं के बदले
कोई पट्टे से बांधे
तो बेहिचक बंध जाते हैं.
इंसान ने कुत्तों से
बहुत कुछ सीखा है,
सिवाय वफ़ादारी के,
मौक़ा मिलते ही
एक इंसान दूसरे को
कुत्ते की तरह काट खाता है.
इंसान ने बहुत सारी बुराइयाँ
कुत्तों से सीख ली हैं,
पर अपनी बुराइयाँ नहीं छोड़ीं,
दरअसल अब इंसान
न इंसान रहा, न कुत्ता.
आजकल इंसान
कुत्तों जैसे बनना चाहते हैं.
वे आदमियों की तरह नहीं,
कुत्तों की तरह लड़ते हैं,
उन्हीं की तरह जीभ लपलपाते हैं,
सुविधाओं के बदले
कोई पट्टे से बांधे
तो बेहिचक बंध जाते हैं.
इंसान ने कुत्तों से
बहुत कुछ सीखा है,
सिवाय वफ़ादारी के,
मौक़ा मिलते ही
एक इंसान दूसरे को
कुत्ते की तरह काट खाता है.
इंसान ने बहुत सारी बुराइयाँ
कुत्तों से सीख ली हैं,
पर अपनी बुराइयाँ नहीं छोड़ीं,
दरअसल अब इंसान
न इंसान रहा, न कुत्ता.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 21 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसच कहा श्रीमान जी इंसानियत विलुप्तप्राय ही है।
जवाब देंहटाएंमेरी रचनायें पढें http://manishpratapmpsy.blogspot.com
खत्म होती जा रही इंसानियत पर गहरा कटाक्ष करती एक वेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति मेरी पढें http://manishpratapmpsy.blogspot.com
एकदम सही कहा आपने । अपना उल्लू सीधा करने के लिए आज इंसान दुम हिलाता कहीं भी पहुँच जाता है ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने ,....इंसान इंसान न रहा!
जवाब देंहटाएंयही तो खासियत है ... बुराइयां ही सीखता है इंसान .. फिर चाहे कुत्ते या बिल्ली या किसी और जानवर से हों ...
जवाब देंहटाएंकटु सत्य है आप की रचना में. बुराइयों को ग्रहण करने में इंसान देर नहीं करता.
जवाब देंहटाएंउम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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