एक अरसे से ख्वामख्वाह जीता रहा हूँ मैं,
तुम जो कभी कहती, तो बेहिचक मर जाता।
वो जो कल ठिठुरकर मर गया सड़क पर,
आप ही कहिए, अगर जाता, तो कहाँ जाता ?
डर नहीं लगता मुझे तूफ़ानी हवाओं से,
मैं जो चाहता, तो किनारे पर ठहर जाता.
ताउम्र उलझाए रखा दुनियादारी ने मुझे,
वक़्त मिला होता,तो मैं भी कुछ कर जाता।
नादान था, जो मारा गया बेकार की अकड़ में,
इल्म होता,तो वो भी ज़रा झुक जाता.
वो शख्स जो डूब गया किनारे पर रहकर,
मझधार में आता, तो पार उतर जाता.
तुम जो कभी कहती, तो बेहिचक मर जाता।
वो जो कल ठिठुरकर मर गया सड़क पर,
आप ही कहिए, अगर जाता, तो कहाँ जाता ?
डर नहीं लगता मुझे तूफ़ानी हवाओं से,
मैं जो चाहता, तो किनारे पर ठहर जाता.
ताउम्र उलझाए रखा दुनियादारी ने मुझे,
वक़्त मिला होता,तो मैं भी कुछ कर जाता।
नादान था, जो मारा गया बेकार की अकड़ में,
इल्म होता,तो वो भी ज़रा झुक जाता.
वो शख्स जो डूब गया किनारे पर रहकर,
मझधार में आता, तो पार उतर जाता.
सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (02-03-2015) को "बदलनी होगी सोच..." (चर्चा अंक-1905) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ख़ूब...सुंदर और भावपूर्ण रचना...बधाई
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण...
जवाब देंहटाएंवो जो कल ठिठुरकर मर गया सड़क पर,
आप ही कहिए, अगर जाता, तो कहाँ जाता ?
सभी शेर बहुत उम्दा, बधाई.
सच है मझधार में जो आता है पार उतर ही जाता है ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर है हर शेर ..
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत खूब। एक उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंsunder aur bhavpurna rachna
जवाब देंहटाएंholi ki shubhkamnaye
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ।