रात बड़ी कंजूस है,
समेट रही है
अपने आँचल में
ओस की बूँदें,
नहीं जानती वह
कि चले जाना है उसे
ओस की बूंदों को
यहीं छोड़कर।
ओस की बूँदें भी
कहाँ समझती हैं
कि ज़िंदा हैं वे
बस सूरज निकलने तक,
सोख लिया जाएगा
उन्हें भी.
सूरज भी न रहे
किसी मद में,
ढक लेगा उसे भी
कोई आवारा बादल,
अगर न ढके तो भी
डूबना होगा उसे
अंततः
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 09 सितम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबादल को भी तो कोई सिरफिरी हवा ले उड़ेगी... अंत.
जवाब देंहटाएंखुबसुरत रचना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (09-09-2018) को "चिट्ठागिरी करने का भी उसूल होता है" (चर्चा अंक-3089)
जवाब देंहटाएंपर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ओस की बूँदें भी
जवाब देंहटाएंकहाँ समझती हैं
कि ज़िंदा हैं वे
बस सूरज निकलने तक...बहुत सुंदर ओंकार जी
सही कहा सब क्षणभंगुर है....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
निमंत्रण विशेष :
हमारे कल के ( साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक 'सोमवार' १० सितंबर २०१८ ) अतिथि रचनाकारआदरणीय "विश्वमोहन'' जी जिनकी इस विशेष रचना 'साहित्यिक-डाकजनी' के आह्वाहन पर इस वैचारिक मंथन भरे अंक का सृजन संभव हो सका।
यह वैचारिक मंथन हम सभी ब्लॉगजगत के रचनाकारों हेतु अतिआवश्यक है। मेरा आपसब से आग्रह है कि उक्त तिथि पर मंच पर आएं और अपने अनमोल विचार हिंदी साहित्य जगत के उत्थान हेतु रखें !
'लोकतंत्र' संवाद मंच साहित्य जगत के ऐसे तमाम सजग व्यक्तित्व को कोटि-कोटि नमन करता है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
नश्वरता पर सुन्दर सृजन ।
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