३२६. आदमी
नदी किनारे
झाड़ियों में खिला
नन्हा-सा फूल,
डाली से जकड़ा,
जन्म से क़ैद,
पर झूमता मुस्कराता।
बिना आराम
अनवरत बहती नदी,
हमेशा गुनगुनाती,
बिना शिकवा,
बिना शिकायत।
आदमी,
हर हाल में उदास,
सुख में भी,
दुःख में भी,
चलने में भी,
रुकने में भी,
मौत से घबराता,
ज़िन्दगी से परेशान।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-09-2018) को "चाहिए पूरा हिन्दुस्तान" (चर्चा अंक-3103) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सूक्ष्म और सटीक अवलोकन.......
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर ।
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