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शनिवार, 1 सितंबर 2018

३२३. बारिश से


बारिश,अब थम भी जाओ.

भर गए हैं नदी-नाले,
तालाब,बावड़ियां,गड्ढे,
नहीं बची अब तुम्हारे लिए 
कोई भी जगह.

अब भी नहीं रुकी तुम,
तो बनाना होगा तुम्हें 
ख़ुद अपना ठिकाना,
उजाड़ना होगा दूसरों को,
क्या अच्छा लगेगा तुम्हें 
यह सब?
क्या अच्छा लगेगा तुम्हें 
कि लोग तुमसे डरें?

बारिश, 
देखो,हमेशा की तरह सजी है 
आसमान की डाइनिंग टेबल,
पर सूरज नहीं कर पा रहा 
नाश्ता या लंच.

सूरज को ज़रा निकलने दो,
बैठने दो आसमान की मेज़ पर,
बारिश, अब थम भी जाओ.

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-09-2018) को "योगिराज का जन्मदिन" (चर्चा अंक- 3083) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    श्री कृष्ण जन्मोत्सव की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. वाह ! नेह भरी मनुहार सुन बारिश अब रुक गयी है

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  3. सुन्दर पंक्तियाँ जन्माष्ट्मी की हार्दिक शुभकामनाएं...

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  4. बारिश,अब थम भी जाओ.....बहुत खूबसूरत रचना केडिया जी

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  5. बहुत लाजवाब ...
    आने दो किसी और को ... सचमुच अब तो आने ही दो ...

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  6. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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