मैं नहीं लिख पाता कोई कविता,
पर आज तुम नहीं हो,
तो शब्द बरस रहे हैं,
जैसे दूर कहीं पहाड़ों पर
हल्के-हल्के पड़ रही हो बर्फ़,
सेमल के पेड़ से जैसे
गिर रहे हों रुई के फ़ाहे,
जैसे रात की रानी गिरा रही हो
पीली डंडियोंवाले सफ़ेद फूल,
जैसे शरद की रात में
पत्तियों पर बरस रही हों
ओस की बूँदें.
आज तुम नहीं हो,
तो उदास हूँ मैं,
लिख रहा हूँ
एक के बाद एक कविता,
अगर ज़िन्दा रखना है मुझे
अपने अन्दर का कवि,
तो तुमसे दूरी बहुत ज़रूरी है.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-08-2018) को "आया फिर से रक्षा-बंधन" (चर्चा अंक-3075) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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रक्षाबन्धन की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अकेले हम - अकेले तुम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार।
आग और तपिश में ही तपकर कुंदन हो जाता हैं।
बधाई sir
दर्द से उपजती है कविता, बहुत सुन्दर, बधाई.
जवाब देंहटाएंPaytm Postpaid Loan Apply : Paytm Postpaid Loan कैसे ले
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