मेरे कस्बे के स्टेशन पर
एक इकलौती ट्रेन रूकती है,
मुसाफ़िर उतरते हैं,
मुसाफ़िर चढ़ते हैं,
इंतज़ार करते हैं उसके पहुँचने का.
कुछ चायवाले, कुछ समोसेवाले,
पान-बीड़ी,मूंगफलीवाले,
न जाने कौन-कौन
क्या-क्या बेचते हैं प्लेटफ़ॉर्म पर.
स्टेशन के पास उग आए हैं
कुछ छोटे-छोटे ढाबे,
ठहरने के लिए कुछ मामूली होटल,
ऊंघते दिख जाते हैं यहाँ
कुछ रिक्शे, कुछ ठेले.
ट्रेन आती है, चली जाती है,
उसे नहीं मालूम
कि कितना कुछ दे दिया है उसने
मेरे इस छोटे से कस्बे को.
एक इकलौती ट्रेन रूकती है,
मुसाफ़िर उतरते हैं,
मुसाफ़िर चढ़ते हैं,
इंतज़ार करते हैं उसके पहुँचने का.
कुछ चायवाले, कुछ समोसेवाले,
पान-बीड़ी,मूंगफलीवाले,
न जाने कौन-कौन
क्या-क्या बेचते हैं प्लेटफ़ॉर्म पर.
स्टेशन के पास उग आए हैं
कुछ छोटे-छोटे ढाबे,
ठहरने के लिए कुछ मामूली होटल,
ऊंघते दिख जाते हैं यहाँ
कुछ रिक्शे, कुछ ठेले.
ट्रेन आती है, चली जाती है,
उसे नहीं मालूम
कि कितना कुछ दे दिया है उसने
मेरे इस छोटे से कस्बे को.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अमर शहीद पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' जी की ७९ वीं पुण्यतिथि “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंयातायात विकास का साधन है
जवाब देंहटाएंसत्य
शहर बसा देती है ट्रेन 👍
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