आओ, अलाव जलाएँ,
सब बैठ जाएँ साथ-साथ,
बतियाएँ थोड़ी देर,
बांटें सुख-दुख,
साझा करें सपने,
जिनके पूरे होने की उम्मीद
अभी बाक़ी है.
हिन्दू, मुसलमान,
सिख, ईसाई,
अमीर-गरीब,
छोटे-बड़े,
सब बैठ जाएँ
एक ही तरह से,
एक ही ज़मीन पर,
खोल दें अपनी
कसी हुई मुट्ठियाँ,
ताप लें अलाव.
घेरा बनाकर तो देखें,
नहीं ठहर पाएगी
इस अलाव के आस-पास
कड़ाके की ठंड.
सब बैठ जाएँ साथ-साथ,
बतियाएँ थोड़ी देर,
बांटें सुख-दुख,
साझा करें सपने,
जिनके पूरे होने की उम्मीद
अभी बाक़ी है.
हिन्दू, मुसलमान,
सिख, ईसाई,
अमीर-गरीब,
छोटे-बड़े,
सब बैठ जाएँ
एक ही तरह से,
एक ही ज़मीन पर,
खोल दें अपनी
कसी हुई मुट्ठियाँ,
ताप लें अलाव.
घेरा बनाकर तो देखें,
नहीं ठहर पाएगी
इस अलाव के आस-पास
कड़ाके की ठंड.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-02-2017) को "सेमल ने ऋतुराज सजाया" (चर्चा अंक-2886) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मिल कर ले सकें अलाप तो ठंड स्वतः ही छँट जाएगी ...
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