बच्चे कई तरह के होते हैं,
खिलौनों को लेकर
उनकी पसंद भी
एक सी नहीं होती.
कुछ बच्चों को पसंद होता है,
खिलौने तोड़ना,
उनसे खेलना नहीं.
ऐसे कुछ बच्चे
बड़े होकर बदल जाते हैं,
छूट जाती है उनकी
तोड़ने की आदत.
कुछ बच्चे,
जिन्हें पसंद होता है
खिलौनों से खेलना,
बड़े होकर उन्हें तोड़ने लगते हैं.
कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं,
जो खिलौनों से खेलते भी हैं,
उन्हें तोड़ते भी हैं.
ऐसे बच्चे जो बड़े हो जाते हैं
और जिनकी आदत नहीं बदलती,
बहुत ख़तरनाक बन जाते हैं.
खिलौनों को लेकर
उनकी पसंद भी
एक सी नहीं होती.
कुछ बच्चों को पसंद होता है,
खिलौने तोड़ना,
उनसे खेलना नहीं.
ऐसे कुछ बच्चे
बड़े होकर बदल जाते हैं,
छूट जाती है उनकी
तोड़ने की आदत.
कुछ बच्चे,
जिन्हें पसंद होता है
खिलौनों से खेलना,
बड़े होकर उन्हें तोड़ने लगते हैं.
कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं,
जो खिलौनों से खेलते भी हैं,
उन्हें तोड़ते भी हैं.
ऐसे बच्चे जो बड़े हो जाते हैं
और जिनकी आदत नहीं बदलती,
बहुत ख़तरनाक बन जाते हैं.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (02-05-2016) को "हक़ मांग मजूरा" (चर्चा अंक-2330) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
श्रमिक दिवस की
शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " मजदूर दिवस, बाल श्रम, आप और हम " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंफिर भी बच्चे बच्चे होते हैं । अच्छी कविता ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... गहरी बात ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सटीक..
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...