बहुत हो गई बहस,
तुमने कुछ कहा,
मैंने काटा उसे,
मैंने कुछ कहा,
तुमने ग़लत ठहराया उसे.
तुम्हारी बात के पक्ष में
सटीक तर्क थे,
मेरी बात भी
आधारहीन नहीं थी.
बड़े-बड़े लोगों ने
कभी-न-कभी, कुछ-न-कुछ
कह रखा था
मेरे समर्थन में
और मेरे ख़िलाफ़ भी.
देखो, घंटों की बहस के बाद भी
नतीज़ा शून्य ही रहा,
तो क्यों न बहस बंद कर दें?
सही-ग़लत का फ़ैसला करना
इतना ज़रूरी क्यों होता है,
कभी तो निकलें इससे,
कभी तो कुछ अलग करें,
बहस नहीं, कुछ बातें करें.
तुमने कुछ कहा,
मैंने काटा उसे,
मैंने कुछ कहा,
तुमने ग़लत ठहराया उसे.
तुम्हारी बात के पक्ष में
सटीक तर्क थे,
मेरी बात भी
आधारहीन नहीं थी.
बड़े-बड़े लोगों ने
कभी-न-कभी, कुछ-न-कुछ
कह रखा था
मेरे समर्थन में
और मेरे ख़िलाफ़ भी.
देखो, घंटों की बहस के बाद भी
नतीज़ा शून्य ही रहा,
तो क्यों न बहस बंद कर दें?
सही-ग़लत का फ़ैसला करना
इतना ज़रूरी क्यों होता है,
कभी तो निकलें इससे,
कभी तो कुछ अलग करें,
बहस नहीं, कुछ बातें करें.
कभी तो कुछ अलग करें,
जवाब देंहटाएंबहस नहीं, कुछ बातें करें.....waah kya baat, bahut sundar
उम्दा रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बहस की कोई अंत नही
जवाब देंहटाएंसही-ग़लत का फ़ैसला करना
जवाब देंहटाएंइतना ज़रूरी क्यों होता है,
कभी तो निकलें इससे,
कभी तो कुछ अलग करें,
बहस नहीं, कुछ बातें करें.
सच बहस से किसी बात का कोई हल नहीं निकलता, बातें हों तो बात बने. .
बहुत सुन्दर