चले गए एक-एक कर
सब-के-सब,
बस मैं बचा हूँ.
बहुत अकेलापन लगता है,
जब खिड़की पर नहीं करता
कोई कबूतर गुटरगूं,
जब छत से लटका पंखा
बिना आवाज़ किए
चुपचाप चलता रहता है,
जब खुलते-बंद होते हैं
दरवाज़े बेआवाज़,
जब चारपाई में नहीं होती
चरमराहट,
जब हवाएं भी छोड़ देती हैं
सरसराना...
ऐसे में अच्छा लगता है मुझे
अपना पानी का नलका,
जो हमेशा टप-टप कर
बूँदें गिराता रहता है.
भाई प्लम्बर, कहीं और जाना,
मेरे घर मत आना,
नलका ठीक मत करना,
एक यही तो है, जो मेरे
अकेलेपन का साथी है.
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
बहुत खूब ... पता नहीं कब तक है ये टप टप का साथ ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंजब अकेलापन घेरता है तो सिरे से सभी चीजें नई लगती हैं। बहुत सुंदर मनोभाव
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