आधी रात को जब
गहरी नींद में सोई थी झील,
शरारत सूझी आम के पेड़ को,
उसने एक पका आम,
जो लटक रहा था
झील के ऊपरवाली डाली से,
टप्प से टपका दिया.
चौंक कर उठी झील,
डर के मारे चीखी,
गुस्से की तरंग उठी उसमें,
थोड़ा झपटी वह पेड़ की ओर,
पर छू नहीं पाई उसे,
कसमसा के रह गई.
दूर आकाश में चमक रहा था चाँद,
सब देख रहा था वह,
मुस्करा रहा था अपनी चालाकी पर,
रात वह भी तो उतर गया था
झील में चुपके से,
इतना चुपके से
कि झील को पता ही नहीं चला.
गहरी नींद में सोई थी झील,
शरारत सूझी आम के पेड़ को,
उसने एक पका आम,
जो लटक रहा था
झील के ऊपरवाली डाली से,
टप्प से टपका दिया.
चौंक कर उठी झील,
डर के मारे चीखी,
गुस्से की तरंग उठी उसमें,
थोड़ा झपटी वह पेड़ की ओर,
पर छू नहीं पाई उसे,
कसमसा के रह गई.
दूर आकाश में चमक रहा था चाँद,
सब देख रहा था वह,
मुस्करा रहा था अपनी चालाकी पर,
रात वह भी तो उतर गया था
झील में चुपके से,
इतना चुपके से
कि झील को पता ही नहीं चला.
आपकी लिखी रचना पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 10 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद! "
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
जीवंत होते चरित्र है इस सुंदर कविता में,
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर रचना ,जीवंत होती हुई ।
जवाब देंहटाएंkya bat hai ....khoobsurat abhiwayakti ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मानवीकरण
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दों से सजी ......
जवाब देंहटाएंचाँद की आंखमिचौली चलती रहती है ...
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