क्षितिज वह जगह है
जहाँ धरती और आकाश
मिलते नहीं हैं,
पर मिलते से लगते हैं.
हम सब चाहते हैं
कि धरती और आकाश मिलें,
उनकी युगों-युगों की कामना
पूरी हो जाय,
उनकी तपस्या का उन्हें
फल मिल जाय.
अंतस की गहराइयों से
जो हम देखना चाहते हैं,
हमारी आँखें हमें
वही दिखाती हैं.
इसलिए हमें लगता है
कि धरती और आकाश
दूर कहीं मिल रहे हैं,
जबकि वे मिलते नहीं हैं,
वे कभी मिल ही नहीं सकते.
sahi kaha lekin bhram bana rahe to bhi theek hi hai ....
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना ..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंगहरा भाव लिए ... कई बार आभास मिलन का काफी होता है क्षितिज को देख कर ...
जवाब देंहटाएंहाँ यह सत्य हैं कुछ चीजें कभी नहीं मिल पाती.............
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता .... बहुत से रिश्ते ऐसे ही होते हैं... क्षितिज जैसे ... धरती आकाश जैसे...
जवाब देंहटाएंwww.vairagidalip.blogspot.in