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शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

१८०. क्षितिज



क्षितिज वह जगह है
जहाँ धरती और आकाश
मिलते नहीं हैं,
पर मिलते से लगते हैं.

हम सब चाहते हैं
कि धरती और आकाश मिलें,
उनकी युगों-युगों की कामना
पूरी हो जाय,
उनकी तपस्या का उन्हें
फल मिल जाय.

अंतस की गहराइयों से
जो हम देखना चाहते हैं,
हमारी आँखें हमें
वही दिखाती हैं.

इसलिए हमें लगता है
कि धरती और आकाश
दूर कहीं मिल रहे हैं,
जबकि वे मिलते नहीं हैं,
वे कभी मिल ही नहीं सकते.

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर व सार्थक रचना ..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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  2. गहरा भाव लिए ... कई बार आभास मिलन का काफी होता है क्षितिज को देख कर ...

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  3. हाँ यह सत्य हैं कुछ चीजें कभी नहीं मिल पाती.............
    http://savanxxx.blogspot.in

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  4. बहुत सुंदर कविता .... बहुत से रिश्ते ऐसे ही होते हैं... क्षितिज जैसे ... धरती आकाश जैसे...
    www.vairagidalip.blogspot.in

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