मुझे याद आती हैं
वे बचपन की बातें,
लूडो,सांप-सीढ़ी का खेल,
आम के पेड़ से कैरियाँ तोड़ना,
मुंह अँधेरे उठकर
बगीचे से फूल चुनना.
मुझे याद आता है
मंदिर में पलाथी मार कर
साथ-साथ पूजा करना,
दुर्गापूजा के पंडालों में घूमना,
सज-धजकर विसर्जन देखना.
रात-रात भर जागकर
अंत्याक्षरी खेलना,
छोटी-छोटी बात पर झगड़ना,
फिर बिना देर किए
सुलह कर लेना.
मुझे याद आता है
कि मेरी छोटी-छोटी ज़रूरतों का
कितना ध्यान था तुम्हें,
कभी नहीं भूलती थी तुम
कि मुझे भिंडी की भाजी
और संतरे बहुत पसंद थे.
मुझे याद आती है
मेरी बीमारी में तुम्हारी उदासी,
मेरी सफलता में तुम्हारी ख़ुशी,
मेरी ख़ुशी में तुम्हारी हंसी.
तुमसे मैंने जाना
कि किस तरह बहनें
एक दिन माँ जैसी हो जाती हैं,
फ़र्क़ बस इतना होता है
कि वे उम्र में छोटी होती हैं
और एक न एक दिन उन्हें
पराए घर जाना होता है.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 31 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंभाई बहन के बचपन के पल की यादों को समेटते लाजवाब रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंअपनी बहन ही सबसे पहली दोस्त होई है...सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंलाज़वाब...बहुत सुन्दर भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंतुमसे मैंने जाना
जवाब देंहटाएंकि किस तरह बहनें
एक दिन माँ जैसी हो जाती हैं,
फ़र्क़ बस इतना होता है
कि वे उम्र में छोटी होती हैं
और एक न एक दिन उन्हें
पराए घर जाना होता है.
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना.
bhawpurn........behtareen
जवाब देंहटाएंबहन के साथ बिताएँ दिनों की याद दिलाती कविता
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
बहुत प्यारा बंधन होता है भाई -बहन का । बहुत सुंदर भाव ।
जवाब देंहटाएंमधुर!
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना ..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...