हमारा प्यार
जैसे अधबना मकान,
ईंट-ईंट जोड़ी,
दीवारें बनाईं,
सीमेंट,सरिया,
बजरी-रोड़ी,
न जाने क्या-क्या मिलाया,
तब जाकर बना
यह अधबना मकान।
फिर क्यों हार मान ली,
क्यों छोड़ दिया अधूरा,
थोड़ी-सी कोशिश करते
तो पूरा हो जाता,
घर बन जाता यह
अधबना मकान.
अगर अधूरा ही छोड़ना था,
तो शुरू हो क्यों किया ?
जिधर मंज़िल ही नहीं थी,
उधर चले ही क्यों ?
क्यों देखे हमने रंगीन सपने
जब करना ही नहीं था हमें
गृह-प्रवेश…
जैसे अधबना मकान,
ईंट-ईंट जोड़ी,
दीवारें बनाईं,
सीमेंट,सरिया,
बजरी-रोड़ी,
न जाने क्या-क्या मिलाया,
तब जाकर बना
यह अधबना मकान।
फिर क्यों हार मान ली,
क्यों छोड़ दिया अधूरा,
थोड़ी-सी कोशिश करते
तो पूरा हो जाता,
घर बन जाता यह
अधबना मकान.
अगर अधूरा ही छोड़ना था,
तो शुरू हो क्यों किया ?
जिधर मंज़िल ही नहीं थी,
उधर चले ही क्यों ?
क्यों देखे हमने रंगीन सपने
जब करना ही नहीं था हमें
गृह-प्रवेश…
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंअधूरे सपने को बहुत सुंदर लाइनो से पूरा किया है आपने । बहुत खूब |
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना ..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
प्यार खुद के शुरू करने से कहाँ होता है ... अपने आप शुरू ह जाता है ...
जवाब देंहटाएंदिल को छूते अहसास...बहुत भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंअच्छा सवाल..... उठाती कविता
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in