अर्जुन, कुरुक्षेत्र में एक युद्ध
तुमने लड़ लिया, जीत लिया,
गुरु द्रोण को भी मार दिया,
अब तुम्हें राज-पाट चलाना है,
जीत का फल भोगना है,
पर बहुत से धर्म-युद्ध
अभी भी लड़े जाने हैं.
अर्जुन, विश्व के सबसे बड़े धनुर्धर,
तुम्हारे पास लड़ने का समय नहीं
और मैं लड़ नहीं सकता,
क्योंकि मैंने तो अपना अंगूठा
तुम्हें सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए
कब का गुरु-दक्षिणा में दे दिया था.
उत्तर देंहटाएंआप की लिखी ये रचना....
20/09/2015 को लिंक की जाएगी...
http://www.halchalwith5links.blogspot.com पर....
आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित हैं...
ओंकार भाई ...सुन्दर ...सारगर्भित
उत्तर देंहटाएंजय श्री राधे
भ्रमर ५
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-09-2015) को "प्रबिसि नगर की जय सब काजा..." (चर्चा अंक-2104) पर भी होगी।
उत्तर देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर ।
उत्तर देंहटाएंवाह बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
उत्तर देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना ..
उत्तर देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
बहुत से धर्म-युद्ध
उत्तर देंहटाएंअभी भी लड़े जाने हैं. .. बहुत ही सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना...
उत्तर देंहटाएंअब तुम्हें राज-पाट चलाना है,
उत्तर देंहटाएंजीत का फल भोगना है,
पर बहुत से धर्म-युद्ध
अभी भी लड़े जाने हैं.
..... बहुत सही .... अब धर्म-युद्ध लड़ने वाला कोई नहीं ...
सुंदर और सार्थक रचना
उत्तर देंहटाएंशायद इसलिए ही कितने ही धर्म युद्ध रोज लडे जाते हैं पर इसमें धर्म की जीत नहीं हो पाती ...
उत्तर देंहटाएंसुन्दर शब्द रचना
उत्तर देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in