कई चेहरे मैंने देखे आईने में,
सब वहां मौजूद थे,
सब पहचाने थे,
सिवाय एक चेहरे के
जो न पहचाना था,
न वहां मौजूद था.
बड़ी कोशिश की मैंने,
बहुत ज़ोर डाला दिमाग पर,
पर नहीं पहचान पाया
वह अनजाना चेहरा.
थक-हारकर मुझे
पूछना पड़ा किसी से,
' यह अनजाना चेहरा,
जो दिख रहा है आईने में,
किसका है ?'
वह हंसा, बोला, 'तुम्हारा'.
सब वहां मौजूद थे,
सब पहचाने थे,
सिवाय एक चेहरे के
जो न पहचाना था,
न वहां मौजूद था.
बड़ी कोशिश की मैंने,
बहुत ज़ोर डाला दिमाग पर,
पर नहीं पहचान पाया
वह अनजाना चेहरा.
थक-हारकर मुझे
पूछना पड़ा किसी से,
' यह अनजाना चेहरा,
जो दिख रहा है आईने में,
किसका है ?'
वह हंसा, बोला, 'तुम्हारा'.
बहुत सुंदर.स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : झूठे सपने
बहुत गहन और उम्दा प्रस्तुति...सच में समय के साथ हम स्वयं से कितने अनजान हो जाते हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंHAPPY INDEPENDENCE DAY
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएं' यह अनजाना चेहरा,
जवाब देंहटाएंजो दिख रहा है आईने में,
किसका है ?'
वह हंसा, बोला, 'तुम्हारा'.
यह भी कहना मुश्किल है. बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति.
दिनांक 17/08/2015 को आप की इस रचना का लिंक होगा...
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर...
आप भी आयेगा....
धन्यवाद...
बहुत ही बढियाँ
जवाब देंहटाएंकभी -कभी हम खुद को ही नहीं पहचान पाते ... बहुत अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
खुद को पहचानना कई बार आसान नहीं होता ... भाव पूर्ण ...
जवाब देंहटाएं