बदनाम मत करो मुझे,
जानो,समझो,मुझे पहचानो.
मैं हर साल आता हूँ
ताकि पुराने दकियानूसी पत्ते
छोड़ दें अपनी हठधर्मिता,
समझ लें कि उनका काम पूरा हुआ
और राह दें नए कोमल पत्तों को
जिनके कन्धों पर सवार होकर
एक नए दौर को आना है.
मुझे विध्वंसक मत कहो,
ध्यान से देखो मुझे,
दरअसल सर्जक हूँ मैं,
विध्वंस में ही छिपा है सृजन,
जब तक अंत नहीं होता
शुरुआत भी नहीं होती.
मैं ही तैयार करता हूँ ज़मीन,
मैं ही डालता हूँ बुनियाद
आनेवाले सुनहरे कल की,
ज़रा सोचो कि मैं नहीं होता
तो वसंत कैसे आता?
मैं ही तैयार करता हूँ ज़मीन,
जवाब देंहटाएंमैं ही डालता हूँ बुनियाद
आनेवाले सुनहरे कल की,
ज़रा सोचो कि मैं नहीं होता
तो वसंत कैसे आता?-------
सार्थक और सटीक बात कही है
बहुत सुंदर रचना----बधाई
आग्रह है मेरे भी ब्लॉग में सम्मलित हों
प्रसन्नता होगी---आभार
अगर दुःख न हो तो सुख का आनंद कहाँ ,,,,
जवाब देंहटाएंहर अंत में एक आरम्भ छुपा होता है
सुन्दर रचना
साभार !
विध्वंस में ही छिपा है सृजन!
जवाब देंहटाएंsaty hai.
acchee arthpuurn rachna.
दरअसल सर्जक हूँ मैं,
जवाब देंहटाएंविध्वंस में ही छिपा है सृजन,
जब तक अंत नहीं होता
शुरुआत भी नहीं होती.
...बहुत सार्थक और प्रभावी अभिव्यक्ति...
सार्थक प्रभावी सुंदर अभिव्यक्ति.,,,
जवाब देंहटाएंRecent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
सार्थक और प्रभावी अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंRecent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,