वह जो कविता कल दिखी थी,
अचानक गायब हो गई.
बहुत सुन्दर, बहुत अच्छी थी,
पर मेरा ध्यान ज़रा क्या भटका
कि वह रूठकर चली गई,
फिर मिली ही नहीं.
न जाने कहाँ चली गई,
बहुत परेशान रहा मैं,
बहुत खोजा मैंने,
पर नतीजा शून्य,
अब तो उसके मिलने की
उम्मीद भी नहीं रही.
सोचता हूँ, अब कभी कोई कविता आई,
तो सब कुछ छोड़कर साथ हो लूँगा,
खोने का दंश और नहीं सहूंगा,
बहुत कुछ खोया है मैंने,
तब जाकर सीखा है
कि कभी कोई कविता दस्तक दे,
तो दरवाज़ा तुरंत खोल देना चाहिए.
अचानक गायब हो गई.
बहुत सुन्दर, बहुत अच्छी थी,
पर मेरा ध्यान ज़रा क्या भटका
कि वह रूठकर चली गई,
फिर मिली ही नहीं.
न जाने कहाँ चली गई,
बहुत परेशान रहा मैं,
बहुत खोजा मैंने,
पर नतीजा शून्य,
अब तो उसके मिलने की
उम्मीद भी नहीं रही.
सोचता हूँ, अब कभी कोई कविता आई,
तो सब कुछ छोड़कर साथ हो लूँगा,
खोने का दंश और नहीं सहूंगा,
बहुत कुछ खोया है मैंने,
तब जाकर सीखा है
कि कभी कोई कविता दस्तक दे,
तो दरवाज़ा तुरंत खोल देना चाहिए.
बिलकुल......
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसा ही भाव आपकी एक और रचना में था....
जानते हैं उपन्यासकार शिवानी जी ने कहा था कि उनकी लिखी सबसे सुन्दर पंक्तियाँ वो थीं जिन कागजों पर हल्दी के दाग थे....
याने कि वो रसोई में लिखी गयीं थी :-)
सादर
अनु
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति,मन में भाव आते ही तुरंत लिख लेना चाहिए,,, ,,,,
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनायें!
Recent post: रंगों के दोहे ,
बहुत ही सुंदर रचना,,,मन में भाव आते ही लिखकर सहेज ले
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनायें!
Recent post: रंगों के दोहे ,
खोने का दंश और नहीं सहूंगा,
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ खोया है मैंने,
तब जाकर सीखा है
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aah..bahut sundar
सुन्दर भाव. कभी कभी पूरा दिन सोचता हूँ क्या लिखूं. कभी कभी काम करते करते कविता बन जाती है मन में.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सच कहा है...होली की हार्दिक शुभकामनायें!
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