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शनिवार, 15 सितंबर 2012

४८.कोरा कागज़

कोरा पड़ा हूँ न जाने कब से,
अब तो भरो मुझे,
लिख डालो कोई सुन्दर कविता,
कोई दमदार कहानी
या कोई असरदार लेख.

यह सब मुश्किल हो 
तो अपशब्द भी चलेंगे,
या कुछ शब्द जो वाक्य न बनें,
कुछ वर्ण जो शब्द न बनें.

आड़ी-तिरछी रेखाएँ भी चलेंगीं,
यहाँ तक कि छिड़की हुई स्याही भी,
पर उपेक्षा सहन नहीं होती,
कम-से-कम मुझे फाड़ तो दो.

8 टिप्‍पणियां:

  1. कोरा कागज़ ब्यान कर रहा है अपनी एक कहानी,
    स्याही और कलम बन गए है उसकी जुबानी
    आड़ी तिरछी रेखा करती कोरे कागज़ पर खिंचातानी
    है दमदार इस कोरे कागज़ की कहानी

    https://udaari.blogspot.in

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  2. उपेक्षा का दंश ज्यादा सालता है .... गहन अभिव्यक्ति

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  3. पर उपेक्षा सहन नहीं होती,
    कम-से-कम मुझे फाड़ तो दो.

    गहरे भाव

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  4. बहुत ही सुन्दर भाव लिए कविता \
    आशा

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  5. कोरे कागज की चाह ...
    ये उपेक्षा किसी को भी सहन नहीं होती ...

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  6. गहन भाव लिए बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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