कोरा पड़ा हूँ न जाने कब से,
अब तो भरो मुझे,
लिख डालो कोई सुन्दर कविता,
कोई दमदार कहानी
या कोई असरदार लेख.
यह सब मुश्किल हो
तो अपशब्द भी चलेंगे,
या कुछ शब्द जो वाक्य न बनें,
कुछ वर्ण जो शब्द न बनें.
आड़ी-तिरछी रेखाएँ भी चलेंगीं,
यहाँ तक कि छिड़की हुई स्याही भी,
पर उपेक्षा सहन नहीं होती,
कम-से-कम मुझे फाड़ तो दो.
अब तो भरो मुझे,
लिख डालो कोई सुन्दर कविता,
कोई दमदार कहानी
या कोई असरदार लेख.
यह सब मुश्किल हो
तो अपशब्द भी चलेंगे,
या कुछ शब्द जो वाक्य न बनें,
कुछ वर्ण जो शब्द न बनें.
आड़ी-तिरछी रेखाएँ भी चलेंगीं,
यहाँ तक कि छिड़की हुई स्याही भी,
पर उपेक्षा सहन नहीं होती,
कम-से-कम मुझे फाड़ तो दो.
गहरे भाव ...
जवाब देंहटाएंकोरा कागज़ ब्यान कर रहा है अपनी एक कहानी,
जवाब देंहटाएंस्याही और कलम बन गए है उसकी जुबानी
आड़ी तिरछी रेखा करती कोरे कागज़ पर खिंचातानी
है दमदार इस कोरे कागज़ की कहानी
https://udaari.blogspot.in
उपेक्षा का दंश ज्यादा सालता है .... गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंपर उपेक्षा सहन नहीं होती,
जवाब देंहटाएंकम-से-कम मुझे फाड़ तो दो.
गहरे भाव
upeksha kisi ko bardaast nahi hotee , kore kagaj ko bhi
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भाव लिए कविता \
जवाब देंहटाएंआशा
कोरे कागज की चाह ...
जवाब देंहटाएंये उपेक्षा किसी को भी सहन नहीं होती ...
गहन भाव लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएं