उस दिन मैंने देखा,
कबाड़ी के सामान में
कुछ पुरानी किताबें थीं,
तुड़ी-मुड़ी, पीली-सी,
कुछ किताबें स्वस्थ भी थीं,
मेन्टेन कर रखा था उन्होंने ख़ुद को.
कातर नज़रों से मुझे
देख रही थीं किताबें,
सुबक-सुबक कर कह रही थीं,
हमें ख़रीद लो किलो के भाव,
सजा देना अपने बुक-शेल्फ़ में,
भले पढ़ना मत.
किताबें कह रही थीं,
जब हमें फाड़ा जाता है
और हमारे पन्नों में
भेलपुरी परोसी जाती है,
तुम्हें क्या बताएं,
हमें कितना दर्द होता है?
सुंदर यथार्थ प्रस्तुत किया है किताबों का दर्द इससे भी विकट है ।
जवाब देंहटाएंहमें सिखाया गया था
पोथी प्यारी जीव से
है हिवड़े को हार
घणा जतन सूं राखजो
पोथी सेती प्यार।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-08-2019) को " मेक इन इंडिया "(चर्चा अंक-3438) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह अनुपम
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