दुकानों में सजी पतंगें
बहुत ललचाती हैं,
पर उनसे ज़्यादा ललचाती हैं
वे पतंगें,जो कट जाती हैं.
ऐसी पतंगों के पीछे
लोग पागल हो जाते हैं,
उन्हें लूटने के लिए
अंधाधुंध दौड़ते हैं,
लड़ते हैं, झगड़ते हैं.
दरअसल यह पागलपन
पतंग उड़ाने के लिए नहीं.
बेसहारा पतंगों को
हासिल करने के लिए होता है.
तभी तो इस आपाधापी में
अक्सर पतंगें तार-तार हो जाती हैं,
जिसके भी हाथ लगती हैं,
पूरी नहीं लगतीं.
वाह !आवारापन पर करारा प्रहार
जवाब देंहटाएंसादर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" शुक्रवार 16 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह! गहरी सोच!
जवाब देंहटाएंकटी पतंग की व्यथा को उद्धृत करती बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंतभी तो इस आपाधापी में
अक्सर पतंगें तार-तार हो जाती हैं,
जिसके भी हाथ लगती हैं,
पूरी नहीं लगतीं.
👌👌👌👌
उम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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